Punjab election : बीजेपी की तैयारियां, अटकले और गेम प्लान

पंजाब में विधानसभा चुनाव के दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को जालंधर मे चुनावी जनसभा को सम्बोधित किया। जिसमें उन्होंने दो पार्टियों पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के सबूत मांग रही हैं और वहीं दिल्ली में आम आदमी पार्टी पर गली-गली में शराब की दुकानें खुलवाने का आरोप लगाया। युवा पीढिंयो को शराब की लत से छुटकार दिलाने के लिए उन्होंने पंजाब में डबल इंजन की एऩडीए सरकार के लिए वोट मांगा। 5 जनवरी को फिरोजपुर के बाद ये उनका पहला दौरा रहा।

बीजेपी के रोल में बदलावः-
 पीएम मोदी को जिस एनडीए की याद जालंधर  में आई, उसका अहम साथी शिरोमणि अकाली दल अब इस चुनाव में उनके साथ नहीं हैं। इस बार के चुनाव में बीजेपी नें दो पार्टियों के साथ गठबन्धन किया। जिसमें कुल 117 सीटों का वितरण इस प्रकार हैः-
          भारतीय जनता पार्टी – 65
          पंजाब लोक कांग्रेस – 37
          संयुक्त अकाली दल – 15
 पिछने तीन विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी को 2017, 2012, 2007 में क्रमशः 3, 12, 19 सीटों पर जीत मिली थी। ऐसे में यह भी जानना जरूरी हैं कि चुनाव में बीजेपी की राह कितनी आसान और मुश्किल हैं?
1996 में शिरोमणि अकाली दल नें अटल बिहारी बाजपेई की 13 दिन की सरकार का बिना किसी शर्त समर्थन दिया था। उसी समर्थन के बाद पहली बार 1997 में पंजाब में बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन बना, जो 23 साल बाद जाकर टूटा। लेकिन इस बार बीजेपी का केवल गठबंधन ही नहीं टूटा बल्कि रोल भी बदला हैं। जहां पहले वह अकाली दल के साथ छोटे भाई की भूमिका में रही। वहीं कैप्टन अमरिन्दर सिंह की पार्टी के साथ आज वह बड़े भाई की भूमिका में हैं।  

बीजेपी के पास खोने को कुछ नहीः-

पंजाब में बीजेपी का वोट बैंक कभी भी 10-11% से ज्यादा नहीं रहा इसलिए बीजेपी के पास खोने को कम और पाने को ज्यादा है।

सूत्रों से पता चलता हैं कि “अकाली दल के साथ गठबंधन में जिन सीटो पर बीजेपी चुनाव लड़ती थी वहाँ अकाली दल का वोट बीजेपी को ट्रांसफर होता था। लेकिन कैप्टन अमरिन्दर सिंह के गठबंधन में ऐसा हो पाएगा, इस पर सवालिया निशान हैं। इसका कारण यह हैं कि कैप्टन अमरिन्दर सिंह की पार्टी के  कुछ 4-5 नेता खुद बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ना चाहते हैं ना कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के चुनाव चिन्ह पर।

 ऐसे में एक सवाल उठता हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास अपना वोट बैंक हैं या वो वोट बैंक कांग्रेस का था, जो उन्हें मिलता रहा। इससे एक बात तो यह सिद्ध हो जाती हैं कि बड़े भाई के इस गठबंधन में ज्यादा फायदा तो नहीं होंने वाला।

पंजाब बीजेपी पर दाग ?
लेकिन ऐसा भी नहीं की बीजेपी हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं। चुनाव से पहले मोदी सरकार के कई फैसलों को राजनीति के जानकार पंजाब में बीजेपी के गेम प्लान से जोड़ते हैं।

हाल ही में मोदी सरकार ने गुरू गोविन्द सिंह के प्रकाश पर्व के अवसर पर हर साल 26 दिसम्बर को ‘वीर बाल दिवस’ और 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाये जाने का फैसला लिया। इन फैसलों को जानकार पंजाब के चुनाव से जोड़ कर देखते हैं। जालंधऱ की रैली में इन फैसलों का जिक्र कर जानकारों की राय पर एक तरफ से मुहर भी लगा दी। पीएम मोदी ने इस भाषण में मुख्यत: तीन बाते देशभक्ति, राष्ट्रीय सुरक्षा और पंजाब के विकास पर चर्चा की। ये बाते अहम इसलिए है क्योंकि छोटे भाई की भूमिका में रहने के कारण उसे दोषी नहीं ठहराया जाता।

चुनाव पर किसान आन्दोलन का असरः-

साल भर पंजाब हरियाणा के किसान दिल्ली से लगे बार्डर पर नये कृषि कानून वापस लेने की मांग पर अड़े रहें। एक साल बाद पीएम मोदी ने खुद ही कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी। फिलहाल आन्दोलन स्थगित हैं लेकिन कृषि कानून वापसी से किसानों का रोष कम हुआ?

बातचीत से पता चला कि ग्रामीण इलाकों में किसानों में थोड़ा रोष हैं। लेकिन चुनाव में वो मुद्दा नहीं हैं। ये बात आपको अजीब लग सकती हैं। ये मेरा आकलन हैं। अगर संयुक्त समाज मोर्चा चुनाव नहीं लड़ता तो शायद किसान आंदोलन का असर होता। क्योंकि यह एक किसानों का संगठन हैं जो पंजाब चुनाव में पहली बार किस्मत अजमा रहा हैं।

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