आखिर क्यों गई कमलनाथ सरकार?
23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की चौथी बार शपथ ली, करीब 15 माह के वनवास के बाद वो फिर मुख्यमंत्री बनें, लेकिन आखिर पर्दे के पीछे की कहानी क्या है। आईये हम बताते हैं।
2003 में दिग्विजय सिंह की हराकर उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज की, दिग्विजय सिंह का 10 साल का शासन खत्म हुआ, उसके एक साल बाद ही उमा भारती, फिर बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने, लेकिन अलग-अलग कारणों से वह ज्याद दिन मुख्यमंत्री रह नहीं पाये। फिर भाजपा ने कमान शिवराज सिंह चौहान को सौंपी, उस समय सबको लगा होगा, पार्टी में इतने बड़े-बड़े दिग्गज है, इस अति विनम्र व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाना कितना जायज है, पता नहीं यह सम्हाल पाएंगे या नहीं। लेकिन शिवराज सिंह चौहान का जादू ऐसा बिखरा की वह करीब 15 साल से मुख्यमंत्री हैं।
शिवराज का तिलिस्म 2018 में टूटा, 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में वापस आई, लगा कि अब कुछ नया कर कमलनाथ कांग्रेस का भला करेंगे, निवेश को लेकर कई काम भी शुरू किये, लेकिन फिर ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर आरोप लगे। चूंकि जब ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह कमलनाथ को सीएम बनाया गया,तभी से आपसी खीचतान शुरू हो गई थी, लेकिन वह सम्हाल ली गई। लेकिन फिर सिंधिया समर्थक विधायकों की अनदेखी, दिग्विजय सिंह का अनावश्यक दखल, मंत्रियों को परेशान करने लगा।
हालांकि दिग्विजय सिंह चाहते थे कि सरकार अच्छे से चले, मंत्री भी अच्छे से काम करें इसलिए वह रिपोर्ट मांगा करते थे, लेकिन इसे हस्तक्षेप की तरह समझा गया। और परिणाम यह निकला की कांग्रेस में तीन गुट हो गये। जैसे तैसे तीन महीने बीते थे कि लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया की गुना लोकसभा से हारने सरकार के गिरने की पटकथा लिख दी थी।
जब मध्यप्रदेश में किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, अमित शाह तब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब लगा कि चाहे कुछ हो जाये, मध्यप्रदेश में तो अमित शाह भाजपा की सरकार बना लेेंगे, लेकिन उस समय केन्द्रीय नेतृत्व में इस तरह सरकार बनाने में रूचि नहीं ली, लेकिन अटकलें, बयान इस तरह के आते रहे कि सरकार गिर जायेगी।
हालांकि दिग्विजय सिंह पूरे आत्मविश्वास में थे कि सरकार नहीं गिरेगी, और यह अति आत्मविश्वास उन्हे भारी पड़ गया। उन्हें लगता रहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी भाजपा में नहीं जाएंगे, और यदि वो चले भी गये तो, विधायक तो कतई उनके साथ नहीं जाएंगे, लेकिन कमलनाथ के सड़क पर उतरना है तो उतर जायें बयान के बाद सिंधिया बागी हो गये।
बाकि का काम तो फिर भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को करना था, और उन्होंने बखूबी किया औऱ फिर मार्च 2020 में भाजपा की सरकार बन गई।
यदि आप पूरे घटनाक्रम पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि कमलनाथ का दिग्विजय सिंह पर अधिक भरोसा होना, दिग्विजय सिंह का विधायकों पर भरोसा होना औऱ ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस नेतृत्व खासकर राहुल गांधी से भरोसा टूटा मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के गिरने में कारण रहे।