Panchayat Season 2 REVIEW : हंसाती, गुद-गुदाती और आखिर में रूला जाती है पंचायत

लेखक दो तरह के होते है, एक जिसे कहानी का अंत पता होता है और तमाम घटनाओं से होकर वो एंडिंग पर पहुँचता है। दूसरा जो महज एक प्लॉट सोचता है उसपे काम करता है, अगर अच्छी जा रही हो तो उसमें कमी बेशी के साथ आगे बढ़ता है। कई बार तब वो जबरदस्ती की चीजें भी जोड़ता है क्युकी अंत क्लियर नहीं है इसलिए कहानी में भटकाव मालूम पड़ेगा, मिर्जापुर और सेक्रेड गेम्स यही था।यहाँ काबिलेतारीफ़ है पंचायत के लेखक चंदन कुमार जिन्होंने तकरीबन हर सीन बारीकी से लिखा और डायरेक्शन एक्टिंग bgm डायलॉग जैसे भागो ने भी इतना कायदे से काम किया है की पूरी सीरीज सहित छोटे छोटे सीन्स भी कई कई बार देखने लायक बना है। ये तो तय है की सीन्स और डायलॉग्स की वजह से सालों तक पंचायत के मीम्स चलेंगे जब तक अगला सीजन आये..।

यूट्यूब पर Tvf की वीडियोज देखने वाला दर्शक उसके कई अदाकारों से पहले ही परिचित होता है, लेकिन तीन मिलियन व्यूज वाले वीडियोज की तुलना में पंचायत में उनकी एक्टिंग का लेवल अप होते वो महसूस कर लेता है।

करैक्टर वाइज मैं पहले सीजन से ही बिकास उर्फ चंदन राय का फैन हो गया था.. कसम से इतनी सहज एक्टिंग कोई कैसे कर सकता है! मैंने उसके जैसे कई लड़के देखें है.. उस जैसी टोन, हरकतें, बातें मैंने आम देखीं है। दोनों सीजन में बिकास को देखकर ऐसा लगा जैसे किसी लड़के को बिना बताएं उसकी हरकतें और बातें कैमरे से उतार लिये गये हो। बाद में चंदन राय का इंटरव्यू देखकर भी यही जाना की वो उस माहौल और सोच में पले भी है, तो हो सकता है ये उनके लिए आसान रहा हो लेकिन और कोई दूजा इस किरदार को इतना शानदार निभा सकता हो.. मैं कहूंगा मुमकिन ही नहीं।

सबसे अच्छी बात की कोई तुष्टिकरण नहीं कोई एजेंडा और प्रॉपगेंडा नहीं, गांव और उसमें बसने वाले आम लोग प्रहलाद चा, प्रधान जी, अभिषेक, बिकास, भूषण, बिनोद सब आपके आस पास मिल जायेंगे अगर आप गांव में रहें है। इससे पहले बॉलीवुडिया फिल्मों में गांव ऐसे देखें थे जो इस देश में होने मुमकिन नहीं लगते थे। झक सफ़ेद कपड़ो में पात्र और तकरीबन शुद्ध हिंदी बोलते लोग जाने देश के किस हिस्से में है! अब ott पर दिखने वाले गांव/टाउन्स जो अवैध संबंध और एक्सट्रीम गालियों और हिंसा वाली सीरीज से लोडेड है। सरल सहज होना ही सबसे कठिन है और पंचायत सीरीज इस मामले में नियर ऑफ़ परफेक्शन है।

पंचायत की थीम है की जिंदगी रूपी पेड़ पर फल फूल खिलते हैं तो पत्थर मारने वाले भी मिलते है। कभी बसंत की हरियाली तो कभी अकाल का दुःख भी मिलेगा ही। सारी भावनाएं मिलेगी और सबकुछ से होकर गुजरना पड़ेगा। कभी जोर से हंसी आएगी की ठहाके निकल जायेंगे, कभी दिल रो भी पड़ेगा। लेकिन ये सब जिंदगी के हिस्से है और इस सीरीज के भी।

लेखक- धीरज दास

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