“वेद सकल ब्रह्माण्ड को चलाने का संविधान है।”-सुश्री उषा ठाकुर
संस्कृति की हर बात विज्ञान की कसौटी पर कसी हुई है। वेद सकल ब्रह्माण्ड को चलाने का संविधान है। वेदों के सूत्रों का पालन करे बिना मानवता सुख-समृद्धि प्राप्त नहीं की जा सकती है।
उक्त विचार म.प्र. शासन की संस्कृति, पर्यटन, अध्यात्म मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने कालिदास संस्कृत अकादमी में अथर्ववेद पर आधादित दो दिवसीय कल्पवल्ली समारोह के शुभारंभ पर व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि वैदिक जीवन पद्धति को अपनाने से हमारे जीवन में कोई बीमारी, कोई परेशानी नहीं होगी। भारत चमत्कारों, विश्वासों की देवभूमि है। यहां पर 75 हजार से ज्यादा वनस्पति और 45 हजार से ज्यादा जीव-जन्तुओं का निवास है। जब तक हम ज्ञान-विज्ञान को प्रज्ञान में नहीं बदलेंगे तब दुनिया नहीं बदल पाएंगे। वर्तमान में जो कार्य हो रहे हैं उससे देश पुनः जगद्गुरु बनने की ओर अग्रसर है।
सारस्वत अतिथि वाराणसी से पधारे आचार्य श्रीकिशोर मिश्र ने कहा कि अथर्ववेद जैसे विशाल वाङ्मय को एक साथ एकत्र करना आसान नहीं है। भारतीय परम्परा वेदों पर आश्रित है। भगवान् ने संपूर्ण सृष्टि के संचालन के लिए हमें चार वेद प्रदान किए हैं। इन वेदों में कृषि, राजनीति, विज्ञान सहित अन्य सूत्र समाहित हैं। अथर्ववेद का विज्ञान हमें हर प्रकार की हानि से बचाता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन प्रो. केदारनारायण जोशी ने दिया। उन्होंने कहा कि ऋग्वेद ऋचाओं का समूह है तो यजुर्वेद में सदाचार का समावेश है। सामवेद में संगीत तो अथर्ववेद में निश्चलता व योग का समावेश है। स्वागत भाषण देते हुए अकादमी के प्रभारी निदेशक डाॅ. सन्तोष पण्ड्या ने कहा कि उज्जयिनी प्राचीन शिक्षा का केन्द्र रही है। भगवान् कृष्ण ने यहां पर वेद शास्त्र और समस्त विद्याओं का अध्ययन किया। महर्षि उव्वट ने यहीं पर यजुर्वेद का भाष्य लिखा। अकादमी द्वारा 1982 से कल्पवल्ली का आयोजन किया जा रहा है जिससे वैदिक परम्परा का संवर्धन हो सके। इस अवसर पर अतिथियों ने अकादमी द्वारा प्रकाशित शोध-पत्रिका कालिदास के दो अंकों व डाॅ. सूर्यप्रकाश व्यास की कृति अंधेरे से उजाले तक का लोकार्पण भी किया। अतिथियों का स्वागत अकादमी के प्रभारी निदेशक डाॅ. सन्तोष पण्ड्या, उपनिदेशक डॉ.योगेश्वरी फिरोजिया ने किया।
श्रेष्ठकृतियों को किया पुरस्कृत
संस्कृति मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने अखिल भारतीय कालिदास पुरस्कार के लिए चयनित कृति हिमाचलदशर्नम् के लेखक डॉ.मनोहरलाल आर्य, हरिद्वार को, प्रादेशिक व्यास पुरस्कार के लिए डॉ. सूर्यप्रकाश व्यास, उज्जैन को उनकी कृति विदुषां पत्रपिटकानि तथा प्रादेशिक भोज पुरस्कार के लिए डॉ.पवन व्यास, जयपुर को उनकी कृति मीमांसादर्शन में प्रमाण विमर्श के लिए सम्मान पत्र, सम्मान निधि, स्मृति चिह्न, शाल-श्रीफल प्रदान कर सम्मानित किया। धन्यवाद ज्ञापन अकादमी की उपनिदेशक डॉ.योगेश्वरी फिरोजिया ने किया। संचालन श्री अजय मेहता ने किया। शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद महाविद्यालय के सहकार से आयुर्वेदीय ओषधियों की प्रदर्शनी का संयोजन किया गया। डॉ.रामतीर्थ शर्मा ने दर्शकों को इनका महत्व बताया।