इंदिरा गांधी की तानाशाही और आपातकाल का काला अध्याय
आपातकाल, भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐसा काला अध्याय है जिसे याद कर आज भी दिलों में आक्रोश की लहर दौड़ जाती है। इंदिरा गांधी, जिनके हाथ में सत्ता की बागडोर थी, उन्होंने 25 जून 1975 की उस काली रात को भारतीय गणराज्य पर ऐसा वार किया जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।
इंदिरा गांधी की सत्ता की भूख
इंदिरा गांधी की सत्ता की भूख एक ऐसा सच है जिसके जिक्र को भी आज कांग्रेस द्वारा नजरंदाज कर दिया जाता है। 1971 में ऐतिहासिक जीत के बाद उनके नेतृत्व की प्रशंसा हुई थी, लेकिन इसके बाद की घटनाओं ने उनकी सत्ता के लालच वह अहंकार को उजागर कर दिया। 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इस फैसले ने उनकी सत्ता को हिलाकर रख दिया। लेकिन सत्ता छोड़ने की बजाय, उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर देश पर आपातकाल थोप दिया।
आपातकाल नामक संकट
इमरजेंसी के नाम पर पूरे देश को एक जेल बना दिया गया। राजनीतिक विरोधियों को बिना किसी सुनवाई के गिरफ्तार कर लिया गया। प्रेस की आजादी को कुचल दिया गया, और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निगल लिया गया, न्याय का गला घोंट दिया गया। यह ऐसा समय था जब बोलने की आजादी केवल किताबों में रह गई थी और सच्चाई को छुपा दिया गया था। आम जनता भय के साये में जी रही थी और सरकार की तानाशाही चरम पर थी।
अनुशासन और विकास के नाम पर अत्याचार
राजनीतिक विरोधियों को बिना किसी सुनवाई के गिरफ्तार कर लिया गया जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे बड़े नेताओं को भी कैद कर लिया गया। इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी ने अनुशासन और विकास के नाम पर अत्याचार की सभी हदें पार कर दीं। जबरन नसबंदी के अभियानों ने गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों की जिंदगी को नर्क बना दिया। यह एक ऐसा समय था जब सत्ता का दुरुपयोग अपने चरम पर था और जनता की आवाज को दबा दिया गया था।
इमरजेंसी लगाने के पीछे कारण
इंदिरा गांधी का आपातकाल लगाने का फैसला उनकी सत्ता की भूख और तानाशाही प्रवृत्ति का स्पष्ट उदाहरण है। यह एक ऐसा काला अध्याय है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र की आत्मा को जख्मी कर दिया और यह सिखाया कि सत्ता की भूख किसी भी हद तक जा सकती है। इस काले अध्याय को याद कर आज भी देशवासियों के दिलों में आक्रोश की लहर दौड़ जाती है। यह घटना हमें हमेशा याद दिलाती है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।