मकर संक्रांति: क्या है दान और स्नान का महत्व, जानिए इससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

संपूर्ण भारतवर्ष में आज मकर संक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है,ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। खगोलशास्त्र के अनुसार देखें तो सूर्य जब दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं, या पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है,उस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है,मकर संक्रांति हर वर्ष 14 या 15 जनवरी को मनायी जाती है।

क्या है दक्षिणायण और उत्तरायण

दक्षिणायण देवताओं की रात, उत्तरायण दिन होता है।
शास्त्रों के अनुसार सूर्य जब दक्षिणायन में रहते हैं,तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छह माह को दिन कहा जाता है।दक्षिणायन को नकारात्मकता और अंधकार का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता एवं प्रकाश का प्रतीक माना गया है,ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं, एवं इसी मार्ग से पुण्यात्माएं शरीर छोड़ कर स्वर्ग लोक में प्रवेश करती हैं।

जानिए मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कथाएं ?

शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन ही भगवान विष्णु के अंगूठे से निकली देवी गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।
भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान हुआ था।इसीलिए इस दिन बंगाल के गंगासागर में कपिल मुनि के आश्रम पर एक विशाल मेला लगता है.

बंगाल के गंगासागर में स्नान करने का बहुत महत्व है। एक अन्य पौराणिक प्रसंग के अनुसार भीष्म पितामह महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते रहे, उन्होंने मकर संक्रान्ति पर पही अपने प्राण त्यागे थे। यह भी मान्यता है कि इस दिन मां यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।

मकर संक्रांति में महत्व है, गंगा स्नान व दान का

मकर संक्रांति के दिन नदी स्नान व दान का बेहद महत्व
पदम पुराण के मुताबिक सूर्य के उत्तरायण होने के दिन मकर संक्रांति के दिन दान पुण्य का बहुत महत्व होता है।मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से दस हजार गौदान का फल प्राप्त होता है, इस दिन ऊनी कपड़े, कम्बल, तिल और गुड़ से बने व्यंजन व खिचड़ी दान करने से भगवान सूर्य एवं शनि देव की कृपा प्राप्त होती है, वैसे तो सूर्य के उत्तरायण होने वाले माह में किसी भी तीर्थ, नदी एवं समुद्र में स्नान कर दान पुण्य करके कष्टों से मुक्ति पाया सकता है, लेकिन प्रयागराज संगम में स्नान का फल मोक्ष देने वाला होता है।

मकर संक्रांति के इस पावन त्यौहार को अलग अलग राज्यों में अलग अलग नामों से जाना जाता है…

उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है।चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है, तिल और गुण के दान की परंपरा भी है।

गुजरात और राजस्थान में मकर संक्रांति को उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है,इस दिन दोनों ही राज्यों में बड़े धूम से पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है।

आंध्रप्रदेश में संक्रांति नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है।वहीं तमिलनाडु में खेती किसानी के प्रमुख पर्व के रूप में संक्रांति को पोंगल के नाम से मनाया जाता है,इस दिन घी में दाल चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है।

महाराष्ट्र में भी इसे मकर संक्रांति या संक्रांति के नाम से मनाया जाता है,यहां लोग गजक और तिल के लड्डू खाते एवं दान करते हैं।एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं।

पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति के दिन हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है,तो असम में इसे भोगली बिहू के नाम से मनाया जाता है।

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