19 जनवरी 1990 कश्मीर की काली रात,जानिए क्यों रातों रात भागे थे कश्मीरी पंडित……?
कश्मीर विस्थापन दिवस को आज 32 साल होने को आए है। 32 साल पहले कश्मीर घाटी में 3 लाख कश्मीरी पंडित रहते थे जो अब मात्र 808 बचे है।
क्या हुआ था 19 जनवरी 1990 को
स्थानीय जानकारों से बात कर के पता चला की कश्मीरी पंडितों को प्रताड़ित करने का सिलसिला 1989 से ही चालू हो गया था। जब 14 सितंबर 1989 को भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी।यह खबर पूरी घाटी में आग सी फैली।जिहाद के लिए गठित की गई जमात-ए-इस्लामी (जमात) ने शुरू किया था कश्मीरी हिंदुओं और पंडितों पर हमला।
जमात-ए-इस्लामी ने ही पूरे कश्मीर में मुस्लिम ड्रेस कोड किया था लागू और नारा दिया था ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो’
4 जनवरी 1990 को एक लोकल कश्मीरी न्यूज पेपर में एक विज्ञापन निकाला गया, जिसमे साफ साफ शब्दों में यह लिखा गया था की कश्मीरी पंडित और हिंदू कश्मीर छोड़ के तुरंत चले जाए या इस्लाम अपना लें।
कश्मीरी लोकल उर्दू अखबार, हिज्ब – उल ने आतंकियों की तरफ एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमे लिखा था ‘सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं’। अल सफा,एक और लोकल न्यूज पेपर ने इस निष्कासन के आदेश को दोहराया। मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे थे। इसके तुरंत बाद हिंदुओं के घरों और मंदिरों में जानलेवा हमले शुरू हो गए थे। कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए।
उसी समय सभी कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के घरों के दरवाज़े पर एक नोट लगा दिया गया था जिसमें लिखा था ‘या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो। दबाब डाल कर पंडितों के घर और जमीनों के कब्जा कर लिया गया। 300 से अधिक हिंदू महिलाओं और पुरुषों को आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया।साल 1990 में आतंकियों के हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद से लाखों कश्मीरी हिंदुओं को अपना घर छोड़ कर रातों रात भागना पड़ा जान की रक्षा के लिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा जम्मू और कश्मीर से साल 2019 में अनुच्छेद 370 और 35ए के हटने के बाद कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की उम्मीद वापस बंधी है। अनुच्छेद हटने के बाद अब तक कुल 520 प्रवासी हिंदू कश्मीर वापस लौटे हैं।