नोएडा सीईओ ऋतु माहेश्वरी पर प्रयागराज हाईकोर्ट ने जारी किया गंभीर आदेश
हमारे देश के हर कोने में रोज अदालतें लगती हैं, कई मामले पेश किए जाते हैं, पक्ष-विपक्ष के वकील-दलील-सुनवाई-तारीख की लंबी फेहरिस्त के बाद महीनों-सालों के बाद कुछ निर्णय आते हैं। इस बीच आरोपी स्वतंत्र घूमते हैं और वकीलों का रोजगार बना रहता है, यह कोई नई बात नहीं है लेकिन आज इस विषय हम यह चर्चा कर रहे हैं क्योंकि प्रयागराज हाईकोर्ट ने कुछ ऐसा हुआ जोकि अकल्पनीय था।
मामला New Okhla Industrial Development Authority या बोलचाल की भाषा में “नोएडा” की सीईओ श्रीमती ऋतु माहेश्वरी से जुड़ा हुआ है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि “इंडस्ट्री” और “डेवलपमेंट” दो शब्द हैं मतलब मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा होना चाहिए लेकिन इन दो शब्दों के साथ एक नाम और है जिसके बारे में उत्तरप्रदेश सरकार के बड़े-बड़े नेता-अधिकारी और पूंजीपति कहते हैं कि “जब तक ऋतु माहेश्वरी है काम पैसों से नहीं नियम से होगा” इस तरह की छवि रखने वाली महिला आईएएस ऋतु माहेश्वरी
पर आरोप है “15 मिनट” देर से अदालत पहुंचने का, नोएडा सीईओ ऋतु माहेश्वरी को भूमि अधिग्रहण से जुड़े एक मामले में किसान ने उन पर अवमानना याचिका दायर की थी। इसी मामले के लिए ऋतु माहेश्वरी को नोएडा से प्रयागराज हाईकोर्ट पहुंचकर हाजिरी लगानी थी, और वह अदालत पहुंची भीं लेकिन 15 मिनट की देर से, अब यह 15 मिनट की देरी प्रयागराज हाई कोर्ट को ऐसी खली की उन्होंने ऋतु माहेश्वरी के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया और अब इस मामले की सुनवाई 13 मई 2022 को तय कर दी। यह १६ मिनिट की देरी ऋतु माहेश्वरी की २ दशक कर काम पर भारी पड़ गई।
यहां प्रश्न यह उठता है कि एक तरफ तो कोर्ट में गंभीर मामले भी महीनों में सुलझते हैं और जमीन के मामले तो दशकों अदालत की दहलीज पर एडियां रगड़ते पड़े रहते हैं वहीं दूसरी तरफ एक मामले में इतनी ज्यादा जल्दबाजी और इतने कठोर निर्णय कहीं से भी वाजिब नहीं दिखाई पड़ते। जब एक ईमानदार अधिकारी और खास तौर पर महिला अधिकारी को (जिनके पास व्यक्तिगत या कार्यक्षेत्र से जुड़ी कोई भी समस्या हो सकती है देर से पहुंचने की) महज 15 मिनट की देरी के लिए ऐसा कठोर निर्णय सहना पड़े तो यह उन चंद पूंजीपतियों की जीत है जो ऐसे अधिकारियों पर दबाव बनाए रखना चाहते हैं और उन सभी अधिकारियों और न्यायालयों के लिए सबक है कि आप सभी समय व्यर्थ न करते हुए हर शासकीय काम को समय पर पूरा करें और अदालतें भी जल्द से जल्द सारे मामलों में निपटारा करें क्योंकि यदि एक व्यक्ति 15 मिनट की देर के लिए गैर जमानती धारा के लपेटे में आ सकता है तो शासकीय बाबुओं की मेज पर फाइलें और अदालतों में इंसाफ तलाशते हजारों मामले सालों से कतार में खड़े हैं।
इस मामले से अब उत्तरप्रदेश के साथ ही देश के उन तमाम ईमानदार अधिकारियों को नियमानुसार अपना कार्य करने से पहले बेहद सोच समझ कर कदम उठाने होंगे और न्यायालय को भी यह सोचना होगा कि ऐसे निर्णय निष्पक्ष और निष्ठावान अधिकारियों के लिए हतोत्साहित करने वाले साबित न हों।