कश्मीरी पंडितों के दर्द का दस्तावेज है ‘द कश्मीर फाइल्स’
( भास्कर बाजपेई, स्वतंत्र लेखक )
साल 2019 में विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ में उन्होंने इतिहास की मैली चादर से ढकी पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हत्या की असलियत को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की थी, इस बार उन्होंने कश्मीर की सबसे गंभीर समस्या को बेनकाब किया है। इस फिल्म में सामने जो कुछ आता है वो एक इंसान की आत्मा तक को हिला देने वाला है, और सोचने पर मजबूर कर देता हैं कि आखिर ऐसा क्या कारण रहा जिसके चलते पूरी दुनिया से इसके सच को जानने से रोका गया। लोग कह सकते हैं कि फिल्म में कोई एक्शन नहीं, कोई कमाल नहीं है, लेकिन इस फिल्म का कमाल इसका सच है। वह सच जिसे कह सकने की हिम्मत कश्मीर से निकले तमाम निर्देशक तक भी नहीं दिखा पाए।
विवेक अग्निहोत्री ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ के माध्यम से उस भयावह सच के एक छोटे से हिस्से को दिखाने की सरहानीय कोशिश की है जिसमे, 90 के दशक में कश्मीर में हुए कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के नरसंहार और उनके पलायन का दर्द है। फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ एक तरह से इतिहास की उन पन्नो को पलटने और आज के युवाओं के सामने उस वक्त की सच्चाई को सामने लाने की कोशिश है जिनमें भारत में वीभत्स नरसंहारों के चलते हुए सबसे बड़े पलायन की कहानी को दफना दिया गया है। अंग्रेजों से आजादी मिलने के बावजूद भी भारत में कश्मीरी पंडित ही शायद इकलौती एक ऐसी कौम है जिसे उनके घर से बेदखल कर दिया गया है और सवा सौ करोड़ों से अधिक की आबादी वाले इस देश में ज़रा भी हलचल तक न हुई और न ही इसको मीडिया द्वारा जनता के सामने कभी लाने की कोशिश की गयी। पिछले 70 वर्षों में जिस भारत की अखंडता, कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक होने वाले देश का दम बार-बार बड़-बड़े नेता भरते रहे हैं, उसके हालात की ये बानगी किसी भी इंसान की अंतर-आत्मा को सिहरा सकती है। करिब 32 साल पहले की कहानी से शुरू हुई फिल्म की शुरुआत ही एक ऐसी घटना से होती है जो क्रिकेट के बहाने एक बड़ा चिंतनीय सन्देश देती है। घाटी में जो कुछ हुआ वह वाकई में भयावह रहा है और उसे पर्दे पर देखना और भी दर्दनाक है। आतंक का ये एक ऐसा छिपा चेहरा है जिसे पूरी दुनिया के सामने उजागर करना और सभी को दिखाना बहुत जरूरी है। विवेक अग्निहोत्री ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ से लगभग सभी प्रतिष्ठित मीडिया हाउस, बॉलीवुड की बड़ी-बड़ी हस्तियों और कुछ छोटे परदे के प्रमोशनल कार्यक्रमों ने इस फिल्म के प्रमोशन, यहाँ तक की इसके बारे में बोलने तक से अपने हाथ पीछे खींच लिए, लेकिन सच्चाई लाने के लिए खतरों से किसी को तो खेलना ही होगा, और विवेक अग्निहोत्री ने ये खतरा उठाया, जिसके लिए जनता ने उनका धन्यवाद किया। फिल्म को जिस खूबी के साथ दर्शाया गया है, उससे पूरी पिक्चर के दौरान दर्शक अपने आप को अलग नहीं कर पा रहे हैं। सिनेमा हॉल में फिल्म के दौरान शायद ही कोई दर्शक ऐसा होगा जो अपने आंसू रोक पाया होगा।
विवेक अग्निहोत्री ‘द कश्मीर फाइल्स’ में कश्मीरी पंडितों के जिस दर्द और सच्चाई को दिखाया गया है, उसके चलते हरियाणा, गुजरात और मध्यप्रदेश सरकार ने फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया हैं। साथ ही मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने ज़्यादा से ज़्यादा लोगों से इस फिल्म को देखने और सच से रूबरू होने का आग्रह किया है। वहीं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ की टीम से व्यक्तिगत रूप से मिलकर कश्मीरी पंडितों की सच्चाई दिखाने के लिए उनकी हिम्मत और उनकी फिल्म के लिए बधाई दी।
फिल्म में दिखाया गया नरसंहार भले ही उस पैमाने सा ना दिख पाया हो, लेकिन इसकी भयानक वास्तविकता और वीभत्स एहसास रोंगटे खड़े कर देने वाला है। फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की रिसर्च इतनी बेहतरीन है कि एक बार फिल्म शुरू होती है तो दर्शक फिर इससे आखिर तक अपने को अलग नहीं कर नहीं पाते हैं।
फिल्म में अनुपम खेर ने पुष्करनाथ का किरदार निभा कर एक कश्मीरी के दर्द को बखूबी बयां किया है, वहीं दर्शन एक कंफ्यूज्ड कॉलेज युवा के रूप में अपने किरदार को पूरी शिद्दत के साथ निभाते हुए दिख रहे हैं। कहानी के विलेन फारूख मल्लिक बिट्टा के रूप में चिन्मय मांडलेकर और प्रोफ़ेसर के रोल में पल्लवी जोशी का किरदार भी काफी प्रभावशाली है। इनके अलावा फ़िल्म में मिथुन चक्रवर्ती, अतुल श्रीवास्तव, प्रकाश बेलावड़ी, पुनीत इस्सर अपने अभिनय के द्वारा फिल्म को एक लेवल ऊपर लेकर गए हैं। कुल मिलाकर फिल्म में सभी अभिनेताओं ने अपना किरदार पूरी ईमानदारी और वास्तविकता के साथ निभाया है जिसका, नतीजा की दर्शक इनकी तारीफ करते नहीं रुक रहे हैं।
1990 में आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों की हत्याएं की गईं, और उन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया गया, फिल्म के अनुसार इस हृदयविदारक घटना में तत्कालीन सरकारों का भी हाथ होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। यह एक नरसंहार था, एक सामूहिक पलायन था जिसने कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने पर मजबूर कर दिया। लेकिन वर्तमान सरकार के द्वारा कश्मीर से धरा 370 को हटाने का एक क्रन्तिकारी कदम उठाया गया, जिसके बाद कश्मीरी पंडितों को पुनर्स्थापित किये जाने की प्रक्रिया पर तेज़ी के साथ काम किया जा रहा है।
आज के इस सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के युग में सच्चाई से ज़्यादा तेज़ी के साथ भ्रांतियां फैलाई जाती हैं, कुछ शरारती लोग अपने इंटरटेमेंट के लिए देश की सुरक्षा को भी ताक पर रखने से नहीं चूकते हैं, और सोशल मीडिया में भ्रामक कंटेंट वायरल कर नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं, इसीलिए आज युवाओं को और ज़्यादा सचेत रहने की ज़रुरत है, और सच को जानने ज़रुरत है। मेरा व्यक्तिगत सुझाव है कि आप भी इस फिल्म को ज़रूर देखें, खासकर कि सभी युवा साथी, क्योंकि अभी तक आपको इस घटना के एक ही पहलू को दिखाया और बताया गया है, और इस फिल्म में आप घटना के दूसरे पहलू को भी काफी हद तक जान पाएंगे। इसके बाद फैसला आपके हाथ में कि आप देश की बागडोर किसके हाथों में सुरक्षित समझते हैं।
जय हिन्द!